लेटेस्ट ख़बरे विधानसभा चुनाव ओपिनियन जॉब - शिक्षा विदेश मनोरंजन खेती टेक-ऑटो वीडियो वुमन खेल बायोग्राफी लाइफस्टाइल

OBC समाज: जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का भविष्य

OBC समाज को अब तक राष्ट्रीय नेतृत्व से वंचित रखा गया है; जाति जनगणना जैसे मुद्दों ने एकजुटता की नई उम्मीद जगाई है, लेकिन अभी राष्ट्रव्यापी तंत्र का अभाव बना हुआ है।

OBC समाज के बीच, भारतीय राजनीति में सर्वथा से सर्वमान्य राष्ट्रीय नेतृत्व का अभाव रहा है। राजनीतिक नेतृत्व के नाम पर ओबीसी को प्रांतीय नेतृत्व तो मिला लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व अब भी दूर की कौड़ी है। ओबीसी का प्रांतीय नेतृत्व भी बहुधा, कुछ राजनीतिक नेताओं को छोड़कर, राजनीतिक चाकरी कर रहे नेताओं के हाथ में रही है।

ओबीसी के राष्ट्रीय नेतृत्व की एकमात्र संभावना ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर बना था लेकिन उस समय भी राष्ट्रीय नेतृत्व अस्तित्व में नहीं आ पाया, जिसके दो कारण थे — पहला, जिस दल के नीचे यह लड़ाई लड़ी गई, उस दल का महत्वाकांक्षा के चलते पतन होना और दूसरा कारण, पिछड़ों के राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना के विरोध में कमंडल की कसरत, जिसने कल्याण और उमाभारती जैसे ओबीसी नेताओं का प्रतिस्थापित कर, ओबीसी के स्वतंत्र राष्ट्रीय नेतृत्व की संभावना को कमजोर कर दिया।

राष्ट्रीय नेतृत्व के अभाव में ओबीसी समूह पर सभी दलों की निगाहें होती हैं कि किसी तरह इस समूह का अधिकतम वोट लेकर, अपने-अपने समर्थक वर्ग का राजनीतिक/आर्थिक/प्रशासनिक तुष्टीकरण कर सके, जैसा कि वर्तमान में 10% सवर्ण आरक्षण और महिला आरक्षण को लेकर किया गया।

दशकों बाद, जातीय जनगणना के ज्वलंत मुद्दे ने एक बार फिर ओबीसी के राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट होने की संभावना को बल प्रदान किया है। जाति जनगणना से ओबीसी समाज के राष्ट्रीय एकता की संभावना तो है लेकिन ओबीसी मतों की एकजुटता से राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए ओबीसी समाज के पास कोई राष्ट्रव्यापी तंत्र नहीं है, जिसके चलते आज़ादी से लेकर अब तक ओबीसी हितों के लिए राजनीतिक विलेन की भूमिका निभाने वाली कांग्रेस, ओबीसी नेतृत्व के सपने देख रही है।

राहुल गांधी, अपने राजनीतिक हितों के लिए ओबीसी जमात के लिए नित नए-नए लिबास बदल रहे हैं, जिसके चलते राहुल गांधी, जाति जनगणना पर सहमति दे रहे हैं, जिसे खुद इनकी सरकार के होते हुए नहीं होने दिया गया था।

ओबीसी समाज के हित में होगा कि जब तक उसके पास स्वतंत्र राष्ट्रीय नेतृत्व का व्यापक तंत्र नहीं आ जाता है तब तक वह स्वतंत्र प्रांतीय नेतृत्व को समर्थन दे जिससे जाति जनगणना हो सके और पिछड़ों को उनकी आबादी के अनुपात में आर्थिक/प्रशासनिक व राजनीतिक हिस्सेदारी सुनिश्चित हो सके।

ताज़ा खबरों से अपडेट रहें! हमें फ़ॉलो जरूर करें X (Formerly Twitter), WhatsApp Channel, Telegram, Facebook रियल टाइम अपडेट और हमारे ओरिजिनल कंटेंट पाने के लिए हमें फ़ॉलो करें

अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनकी कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

Leave a Comment