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पहलगाम से आतंकियों का पैग़ाम: देश में बढ़ती दहशतगर्दी और सुरक्षा पर सवाल

पहलगाम आतंकी हमले ने देश में गहराते आतंकवाद और सुरक्षा व्यवस्था की चूक को उजागर किया है। 27 निर्दोषों की हत्या और मजहबी आधार पर निशाना बनाना एक गहरी साजिश का संकेत है।

पहलगाम से आतंकियों ने आतंक का जो पैगाम भेजा है वह देश में आतंकवाद की जड़ें और अधिक गहराने का संकेत है।

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27 निर्दोष नागरिकों की हत्या करने वाले आतंकी और इन आतंकियों को प्रशिक्षण व संरक्षण देने वाले सामाजिक समूहों को चाहे वह सीमा के पार हों अथवा सीमा के अंदर उनका समग्र विनाश ही पहलगाम के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजली होगी।

अब समय आ गया है कि देश की सुरक्षा केवल मंचों और भाषणों तक सीमित न रहे। यह आवश्यक है कि कल्पनाओं से निकल कर ठोस कार्रवाई की जाए, सीमाओं की चौकसी बढ़ाई जाए और देश के भीतर पल रही कट्टरवाद की मानसिकता को बगैर किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह से कुचला जाए। तभी पहलगाम जैसी घटनाओं की पर लगाई जा सकती है।

पुलवामा कांड की लीपापोती जिसमें देश आज तक नही जान पाया कि विस्फोटक कहाँ से और कैसे आया, हमारी सुरक्षा प्रणाली की बड़ी चूक को उजागर करता है। बल्कि पहलगाम जैसी भयावह घटना को भी अप्रत्यक्ष रूप से आमंत्रित किया है। यदि पुलवामा की निष्पक्ष और कठोर कार्यवाही होती, तो शायद आतंकियों के हाथों पहलगाम के निर्दोषों की जान बचायी जा सकती थी।

पाकिस्तानी सेना प्रमुख द्वारा हाल में जिन्ना के धार्मिक आधार पर द्विराष्ट्रबाद हिन्दू-मुस्लिम के पुनर्पाठ के बाद पहलगाम में आतंकियो द्वारा नाम पूंछ कर धार्मिक आधार पर गोली मारना महज संयोग नही हो सकता है।

मजहब के आधार पर पहलगाम में आतंकवादियों का पर्यटकों की नृशंश हत्या, एक बड़े साजिश का वार्मअप प्रतीत होता है जिसे सरकार, समाज, राजनीतिक दलों और प्रशासन को गम्भीरता से लेना होगा, वरना मजहबी आग दुनिया की सबसे भयावह दावानल है जिसमें केवल क्रूरता रहती है।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनकी कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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