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आतंकवाद का कोई धर्म नहीं, M4 स्नाइपर राइफल और पहलगाम हमले का असली सच

आतंकवाद को धर्म से जोड़ना सरकार की नाकामी छिपाने का जरिया है। पहलगाम में हुई त्रासदी का असली मुद्दा अत्याधुनिक M4 हथियार और सुरक्षा व्यवस्था की बड़ी चूक है।

अब मीडिया और सोशल मीडिया द्वारा यह नरेटिव सेट किया जा रहा है कि “आतंकवाद” का धर्म होता है। दरअसल यह सब गोदी मीडिया के दर्जनों ऐंकर और ऐंकरानी द्वारा पहलगाम को लेकर सरकार की सुरक्षा नाकामी पर उठते सवालों को डाईवर्ट करने का प्रयास मात्र है।

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    आतंकवाद का धर्म होता तो बताया जाए कि हाशिमपुरा में कौन सा धर्म था ? मेरठ मलियाना, मुरादाबाद में कौन सा धर्म था ? सब छोड़िए, 80 के दशक में पंजाब में फैले आतंकवाद का कौन सा धर्म था ? 1984 में देश भर में फैले सिख विरोधी कत्लेआम में कौन सा धर्म था? कौन से धर्म ने महात्मा गांधी की हत्या की ? कौन से धर्म ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की ? कौन से धर्म ने राजीव गांधी की हत्या की ? 9/11 के पहले पूरी दुनिया में होते कत्लेआम को कौन सा धर्म कर रहा था ?

    ना पहले कोई धर्म आतंकवाद कर रहा था, ना आज कर रहा है। यह सब राजनीति की चाल है, जो अपने गलत कामों और नाकामियों को छुपाने के लिए धर्म को आतंकवाद से जोड़ती है। सरकार ने मीडिया के कुछ पुराने चेहरे जैसे चित्रा त्रिपाठी, अंजना ओम कश्यप, रूबिका लियाकत, रोमाना इसार खान और नाविका कुमार जैसी बूढ़ी हो चुकी ऐंकर्स को मेकअप का लेप लगवा कर टेलीविजन पर दिन रात खुद को बचाने के कार्य में सरकार लगाए हुए है।

    सवाल तो यह है कि जिस POK स्थिति रावलकोट को पहलगाम में हुई घटना की साज़िश का मुख्य बिंदु मान जा रहा है वह रावलकोट पहलगाम से 142 किमी दूर है और पहाड़ों पर कार से 142 किमी की दूरी पूरी करने में कम से कम 8-10 घंटे लगते हैं , पैदल आने में कम से कम 4-5 दिन तो फिर यह आतंकवादी पहुंचे कैसे?

    सवाल और भी गंभीर इसलिए है क्योंकि पहलगाम में आतंकवादियों ने जिस M4 असॉल्ट राइफल का प्रयोग किया, वह कोई आम हथियार नहीं है। यह एक अमेरिकी मिलिट्री राइफल है, जो अमेरिका में भी आम बाजार में नहीं मिलती। इसे हासिल करना वहां भी बेहद कठिन है। फिर सवाल उठता है कि इतनी प्रतिबंधित और अत्याधुनिक राइफल आतंकवादियों तक आखिर पहुंची कैसे?

    अत्याधुनिक वजन में काफी हल्की , गैस-ऑपरेटेड, एयर-कूल्ड और मैगज़ीन-फेड M4 असॉल्ट स्नाइपर राइफल की फायरिंग ताकत फिलहाल सबसे अधिक मानी जाती है और इससे एक मिनट में 700 से 970 राउंड फायरिंग की जा सकती है। इतना ही नहीं, M4 राइफल की रेंज 500 से 3600 मीटर तक है अर्थात इसकी रेंज 3.6 किमी तक है।

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    रात में टारगेट को देखने के लिए नाइट विजन, स्टील बुलेट फायरिंग क्षमता और सटीकता से हमला करने में 100% सफ़ल M4 स्नाइपर राइफल आतंकवादियों तक पहुंची कैसे ? जब कि यह केवल अमेरिकी नौ सेना के लिए ही उपलब्ध है और इसे केवल “यूनाइटेड स्टेट्स मरीन कॉर्प्स” प्रयोग करती है और जनता के लिए तो यह बिल्कुल उपलब्ध नहीं है।

    हैरानी की बात यह है कि कश्मीर में M4 स्नाइपर राइफल की पहली बरामदगी 2017 में पुलवामा में एक आतंकवादी के पास से M4 असॉल्ट राइफल मिली थी। फ़िर भी सरकार नहीं चेती।

    तो फ़िर M4 स्नाइपर राइफल आतंकवादियों के पास आई कैसे?

    दरअसल अमेरिका इसे केवल युद्ध में प्रयोग करता है और इसे वियतनाम युद्ध, लेबनानी गृह युद्ध, ग्रेनेडा पर आक्रमण,खाड़ी युद्ध, इराक युद्ध और अफ़गानिस्तान में युद्ध में प्रयोग किया गया था।

    दूसरी जगहों से यह हथियार आना मुश्किल है, लेकिन आपको याद होगा कि अमेरिका जब अपना बोरिया-बिस्तर अफ़ग़ानिस्तान से समेट कर भागा तो वहां वह हथियारों का ज़ख़ीरा छोड़कर भागा था जिसे लेकर आजतक वह अफगानिस्तान से वापस मांग रहा है।

    ध्यान दीजिए कि 2022 के अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) की एक रिपोर्ट के अनुसार, अफगान नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी फोर्सेस (ANDSF) को 2005 से 2021 तक $18.6 बिलियन मूल्य के उपकरण प्रदान किए गए थे, जिनमें से $7.12 बिलियन मूल्य के उपकरण अफगानिस्तान में ही छोड़ दिए गए।

    आंकड़ों को देखिए कि अमेरिकी फौज कुल 3,16,000 से अधिक हथियार अफ़ग़ानिस्तान में छोड़ कर भागे थे जिनका मूल्य लगभग $512 मिलियन था और इन 3.16 लाख हथियारों में मुख्य रूप से यही M4 और M16 असॉल्ट राइफल थे।

    तो क्या इन्हीं छोड़े गए हथियारों से पहलगाम में कत्लेआम हुआ? हो सकता है। लेकिन असली सवाल यह है कि देश के खिलाफ इतनी बड़ी साज़िश हो रही थी, तब हमारी सुरक्षा एजेंसियां, खुफिया तंत्र और सरकार क्या कर रही थी? देश में बस हिंदूओं को मुसलमानों से लड़ाकर वोट फ़सल काट रही है।

    और यह मत कहिएगा कि आतंकवाद के मामलों में कमी आई है , क्योंकि सिक्योरिटी स्केनर , तमाम सिक्योरिटी चेक मशीनों, ड्रोन और सीसीटीवी के दौर में यह कम होना ही था। आपको पहलगाम में कुछ करना था जो नहीं कर सके।

    सवाल तो यह है कि ₹500-500 में उपलब्ध यही सीसीटीवी कैमरे काश्मीर के चप्पे-चप्पे पर क्यों नहीं लगे ? पहलगाम की वैली के चारों तरफ़ यही कैमरे क्यों नहीं लगे? जहां इतने लोग जाते हों वहां की ड्रोन से निगरानी क्यों नहीं की गयी ?

    उसी काश्मीर में आयोजित भाजपा के बड़बोले सांसद निशिकांत दुबे की वैवाहिक वर्षगांठ पर जितनी सिक्योरिटी लगा दी गई थी उसकी आधी भी पहलगाम में लगा दी गई होती तो आज देश‌ बिलख नहीं रहा होता।

    इन्हीं सवालों का जवाब सरकार से ना पूछा जाए इसलिए मीडिया और सोशल मीडिया पर आतंकवाद में धर्म दिखाया जा रहा है।

    फ़िर लगे हाथ प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, समीर कुलकर्णी, स्वामी दयानंद पांडे और सुधाकर चतुर्वेदी का कौन सा धर्म है, जिन्हें खुद भारत सरकार की एजेंसी NIA फांसी की सज़ा दिलवाने के लिए अदालत में अपील कर रही है।

    चलो बता दो… आतंकवाद का तो धर्म होता है ना?

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    अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनकी कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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