संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति या महिला से ऐसी भाषा की अपेक्षा नहीं की जाती मगर अमृतकाल में भाषा की कोई “रेखा” नहीं रह गई है तो यह अब किसी को खराब नहीं लगता।
दरअसल भाषा की यह रेखा स्वयं देश के मुखिया अपने राजनैतिक जीवन के शुरुआत से ही लांघते रहें हैं और अब उनके राजनैतिक जीवन की सांझ मे उनके नीचे के लोग उससे अधिक घटिया भाषा का इस्तेमाल करके उनके उत्तराधिकारी बनने के लिए प्रयासरत हैं।
क्यों? क्योंकि उन्हें स्वयं मर्यादा की रेखा तोड़ कर दिया बयान पसंद है , उन्हें मज़ा आता है इसलिए सीमंत विश्व सरमा हों, भजनलाल शर्मा हों, मोहन यादव हों, शुभेंदु अधिकारी हों, देवेन्द्र फणनवीस हों, एकनाथ शिंदे हों, या उनके नीचे के लंजू पंजू नेता सब अपनी दावेदारी सिद्ध करने और योगी आदित्यनाथ से बड़ी रेखा खींचने के लिए ऊल-जलूल भाषा और मर्यादा की हर रेखा लांध रहें हैं।
क्योंकि बाप जी को यही पसंद है , वर्ना उनके एक घुड़की से ऐसे छिछले बयान बंद हो जाएं मगर नहीं, रात को वह “नमोगंरेज” विरोधियों को दी गई 2.5 मन गाली तौल कर ही खाना खातें हैं।
अखिलेश यादव ने 2017 में जिस समय मुख्यमंत्री आवास छोड़ा और उन पर “टोंटी चोरी” का आरोप लगा उसके अनुसार पुरानी भारतीय दंड संहिता (IPC) में चोरी को धारा 378 और सरकारी संपत्ति की चोरी के मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 305 और 381 के तहत अपराध है जिसके तहत सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
मगर पिछले 8 सालों में अखिलेश यादव पर सरकार द्वारा इन धाराओं के तहत एक भी मुकदमा दर्ज नहीं कराया गया, सजा तो बहुत दूर की बात है। मगर “टोंटी चोर” के रूप में अखिलेश यादव को लगभग स्थापित कर दिया गया है। आप देश में किसी से पूछिए कि “टोंटी चोर” कौन है , सभी अखिलेश यादव का नाम लेंगे।
यही होता है नरेटिव सेट करना, जिनके खिलाफ यह नरेटिव बनता है, इसके लिए गलती उनकी भी है , जैसे अखिलेश यादव ने गलती की है , उन्होंने न्यूज़24 पर अपनी पार्टी के प्रवक्ताओं के जाने पर रोक लगा दी।
जबकि उन्हें न्यूज24 , उसके एंकर मानक गुप्ता और दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता को मानहानि और मानसिक उत्पीड़न का नोटिस भेजकर मुकदमा दर्ज करना चाहिए। और ऐसे ही तमाम मुकदमे भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया से लेकर अन्य उन सभी पर करना चाहिए था ज़ो स्टूडियो में बैठ कर हाथों में टोटी लिए अखिलेश यादव को “टोंटी चोर” कहते रहे हैं।
अखिलेश यादव पिछले 8 सालों में किसी के खिलाफ ऐसा मुकदमा नहीं कर सके और “टोटी चोर” का तमग़ा लिए घूम रहे हैं।
पता नहीं उनकी पार्टी में लीगल टीम है कि नहीं, और नहीं है तो कम से कम कपिल सिब्बल तो हैं ही जिन्हें अखिलेश यादव ने सांसद बनाया था।
दो चार के खिलाफ ऐसे मुकदमे हो जाएं तो ऐसे झूठे नरेटिव बनाना बंद कर दिए जाएं। मगर इस मामले में अखिलेश यादव हों, राहुल गांधी हों, सोनिया गांधी या मुसलमान हों सब फिसड्डी ही हैं।
वहीं अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री आवास छोड़ने के बाद उसे पवित्र करने के लिए “गंगाजल” से धुलने की सच्ची घटना को नरेटिव बनाने में विरोधी दल सफ़ल नहीं हो सके कि एक पार्टी “यादव” जाति को अछूत मानती है अपवित्र मानती है।
दरअसल झूठा नरेटिव गढ़ने की कला हिटलर के प्रचार मंत्री “गोएबल” ने ईजाद की थी और “एक झूठ को ज़ोर ज़ोर से बार बार बोलने से वह सच हो जाता है” यह थियरी इजाद की थी। वही प्रयोग भारत में किया जा रहा है। मगर हिटलर और गोएबल का क्या हुआ बताने की ज़रूरत नहीं है।
समाजवादी पार्टी को सुझाव है कि वह सोशल मीडिया की टीम को संगठित करे सक्रिय करे , और अधिक फालोवर्स वाली आईडी को अपनी सोशल मीडिया टीम में शामिल करे और उन्हें केंद्रीय कंट्रोल रूम से से नियंत्रित और मार्गदर्शन करे।
नहीं तो इनके खिलाफ लड़ नहीं पाएंगे… जीतना तो बहुत दूर की बात है।