दरअसल दुश्मन की रणनीति सफ़ल हो रही है। वह जो चाहता था, वही हो रहा है। उसने पहलगाम में हिंदू मुस्लिम करके लोगों को मारा, और देश में उसकी उसी रणनीति के अनुरूप नाम पूछ कर हत्या शुरू हो चुकी हैं। यह पहले भी थी, मगर पहलगाम में हुए आतंकवादी घटना के बदले में शुरू हो चुकी है।
कल से एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें कहा जा रहा है कि दो लोगों को मार दिया गया है और अब 28 का बदला 2800 को मारकर लिया जाएगा, जैसे देश में कोई कानून ही नहीं है।
यही तो चाहते थे आतंकवादी, यही उनका मकसद था। पहलगाम में मारे गए लोगों की सूची देखिए, अधिकांश लोग गुजरात, महाराष्ट्र, और हरियाणा के धनाढ्य हैं, क्योंकि ऐसी जगहों पर घूमने वही जाते हैं जिनके पास अतिरिक्त धन होता है।
पहलगाम में कोई मुसलमान पर्यटक नहीं रहा होगा। मैंने सभी पीड़ितों के बयान सुने हैं, जिनमें उनसे पूछा गया, हिंदू हो या मुसलमान? हिंदू कहने पर गोली मार दी गई, और किसी से कलमा पढ़वाया नहीं पढ़ा तो गोली मार दी, मगर एक भी मुसलमान ऐसा नहीं मिला, जो वहां मौजूद हो और कहे कि उससे कलमा पढ़ने को कहा गया, और वह कलमा पढ़ कर बच गया।
आपने देखा या सुना हो तो बताईएगा।
स्पष्ट है कि ऐसी जगहों पर मुसलमान कम ही जाते हैं। अगर उनके पास पैसे होते हैं, तो वे “उमराह” करने जाते हैं या धार्मिक यात्रा पर जाते हैं। कुछ मुसलमान घूमने भी जाते होंगे, लेकिन उस वक्त पहलगाम में वे निश्चित तौर पर नहीं थे।
मगर फिर भी आतंकवादियों ने धर्म पूछकर गोली मारी, इसका मतलब यही है कि उनकी मंशा देश में इसी पैटर्न पर आग लगाने की थी, जैसे गोधरा के बाद गुजरात में हुआ था। उनका उद्देश्य धार्मिक आधार पर समाज में विभाजन और हिंसा फैलाना था, ताकि देश में अस्थिरता पैदा हो सके।
तो भाई, हम वही कर रहे हैं जो आतंकवादियों का एजेंडा था, उसे ही आगे बढ़ा रहे हैं। कल आगरा में पहलगाम के पैटर्न पर एक मुसलमान का नाम पूछकर हत्या कर दी गई। वहीं, जो कश्मीरियों ने अपनी जान की परवाह किए बिना हजारों हिंदू लोगों को वहां से सुरक्षित निकाला, उन्हें पूरे देश में अपमानित किया जा रहा है। कहीं उन्हें मारा जा रहा है, तो कहीं से भगाया जा रहा है। इन कश्मीरियों ने तो कभी किसी का नाम पूछकर उसे बचाने से मना नहीं किया।
मैं हैरान हूं कि हम हिन्दू कैसे हैं? किसी का एहसान भी नहीं मानते? हिन्दू तो ऐसे नहीं होते।
हमें तो पीड़ित लोगों की मदद करनी चाहिए, लेकिन तीन दिन में एक भी किसी संगठन ने पीड़ित लोगों को चवन्नी की भी मदद नहीं की। कहने को तो सब अरबपति खरबपति हैं, अडाणी अंबानी ने भी किसी मदद का ऐलान नहीं किया, जबकि वे भी हिन्दू हैं।
केंद्र सरकार ने भी बस आंसू बहाए, पहलगाम में अपनी गलती मानी, सुरक्षा में चूक को स्वीकार किया। गलती तो थी ही, वही गलती 28 लोगों के लिए काल बनकर आई, मगर आपने अपनी उस गलती की भरपाई क्या की? अंग्रेज़ी में चेतावनी दी, लेकिन पीड़ित हिन्दू परिवारों को देने के लिए आपके पास चवन्नी तक नहीं है।
सिर्फ जम्मू-कश्मीर सरकार ने ₹10-10 लाख देने की घोषणा की, इसके अतिरिक्त गुजरात और महाराष्ट्र सरकार ने अपने राज्य के पीड़ित परिवारों के लिए ₹5.0 लाख की सहायता की घोषणा की।लेकिन ₹10-15 लाख में क्या होगा? ₹2-3 लाख तो मृतकों के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी करने में ही खर्च हो जाएंगे, और ₹3-4 लाख परिवार के आंसू सूखने तक खर्च हो जाएंगे।
उसके बाद क्या? उनके परिवार का क्या? उनके बच्चों के भविष्य का क्या? उनके परिवार के भरण-पोषण का क्या? शाहबानो के लिए तो बड़ी हमदर्दी है, लेकिन जो हिन्दू बहनें अपनी जवानी में विधवा हो गईं, उनके लिए क्या? बड़े-बड़े हिन्दू हैं, तो इनके लिए भी बात कीजिए।
फिर कह रहा हूं, मैं हैरान हूं कि केंद्र सरकार ने मृतक आश्रितों के लिए चवन्नी की भी घोषणा नहीं की। 28 लोगों की विधवाओं को कुल ₹56 करोड़ भी नहीं दे सकते, तो कैसी 56 इंच की छाती?
मेरी मांग है कि सभी पीड़ित परिवारों को कम से कम ₹2 करोड़ रुपए, एक फुल फर्निश 3BHK घर, मृतकों की विधवाओं को सरकारी नौकरी और उनके बच्चों को आजीवन पढ़ाई लिखाई की मुफ्त व्यवस्था की जाए।
इसके लिए आवाज़ उठाइए, परिवारों के भविष्य को सुरक्षित करिए। नहीं तो काहे के हिंदू? अगर हैं, तो आईए, मिलकर आवाज़ उठाते हैं।