TCS पर लगे गंभीर आरोप अब अमेरिकी धरती पर गूंजने लगे हैं। भारत की अग्रणी आईटी आउटसोर्सिंग कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) पर अमेरिका में काम कर चुके कई कर्मचारियों ने नस्लीय और आयु-आधारित भेदभाव के संगीन आरोप लगाए हैं। अमेरिकी समान रोजगार अवसर आयोग (EEOC) ने इस संबंध में जांच की पुष्टि की है, जो पूर्व राष्ट्रपति बाइडन के प्रशासन में शुरू हुई थी और अब राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में भी जारी है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में सामने आया है कि इन आरोपों को मुख्यतः 40 वर्ष से अधिक आयु के अमेरिकी पेशेवरों ने उठाया है। उनका दावा है कि कंपनी ने एच-1बी वीजा धारकों—अधिकतर भारतीय नागरिकों—को तरजीह दी, जबकि गैर-दक्षिण एशियाई कर्मचारियों को जानबूझकर हटाया गया।
TCS ने इन आरोपों को पूरी तरह से बेबुनियाद और भ्रामक करार दिया है। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा है कि, “TCS अमेरिका में समान अवसर प्रदान करने वाली नियोक्ता कंपनी है और उसका ट्रैक रिकॉर्ड इस बात का प्रमाण है। हम वीजा नियमों का पालन करते हैं और किसी भी प्रकार की अवैध गतिविधि में शामिल नहीं हैं।”
वर्तमान में EEOC की जांच जारी है और शिकायतों को गोपनीय रखा गया है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब TCS पर लगे गंभीर आरोप अंतरराष्ट्रीय मंच पर छाए हों। इससे पहले ब्रिटेन में भी कंपनी के तीन पूर्व कर्मचारियों ने ऐसे ही भेदभावपूर्ण व्यवहार का आरोप लगाया था। तब भी कंपनी ने इन दावों को नकारते हुए खुद को निर्दोष बताया था।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि TCS अकेली ऐसी भारतीय कंपनी नहीं है जिस पर ऐसे आरोप लगे हों। वर्ष 2020 में EEOC ने Cognizant Technology Solutions पर भी जांच की थी। उस जांच में पाया गया था कि 2013 से 2022 के बीच कंपनी ने लगभग 2,000 गैर-भारतीय कर्मचारियों के साथ भेदभाव किया था। इसके बाद कंपनी पर सख्त कार्रवाई की गई थी।
अब जब ट्रंप प्रशासन के तहत EEOC के प्रयास और तेज हो गए हैं और एंड्रिया आर. लुकास को एजेंसी का चेयरपर्सन नियुक्त किया गया है, तो TCS समेत अन्य बड़ी आईटी कंपनियों पर निगरानी और सख्त हो गई है।
TCS पर लगे गंभीर आरोप अगर सिद्ध होते हैं, तो यह मामला न केवल कंपनी की वैश्विक साख को प्रभावित करेगा, बल्कि भारतीय आईटी कंपनियों की कार्य संस्कृति पर भी गंभीर सवाल खड़े करेगा। फिलहाल, सभी की नजर EEOC की अंतिम रिपोर्ट और उसके आधार पर उठाए गए संभावित कानूनी कदमों पर टिकी हुई है।