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भारत की शक्ति और इंदिरा गांधी का मजबूत नेतृत्व: अमेरिकी दबाव के बावजूद पाकिस्तान को हराया

1971 में भारत आर्थिक रूप से कमजोर था, लेकिन इंदिरा गांधी ने अमेरिकी धमकियों को अनसुना कर पाकिस्तान को पराजित किया और 93,000 सैनिकों को सरेंडर कराया।

तब भारत बहुत कमज़ोर था, स्वतंत्रता पाए हुए मात्र 25 साल भी नहीं हुए थे, और किसी भी देश के पुनरुत्थान में 25 साल की अवधि बहुत छोटी होती है, एक कण के बराबर। यहां तक कि भारत के पास खाद्यान्न तक नहीं था, और वह एक रोटी के लिए अमेरिका पर निर्भर था।

मगर तब मज़बूत नेतृत्व था। नवंबर 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अमेरिका गयीं तो वहां के तत्कालीन अमेरिकी राष्‍ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मिलने से पहले अपने ओवल हाउस के बगल के कमरे में उन्हें 45 मिनट तक इंतज़ार कराया।

इंदिरा गांधी और रिचर्ड निक्सन के संबंध आज के “माई डियर फ्रेंड” की तरह नहीं थे। अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने उन्हें ‘बूढ़ी चुड़ैल’ और ‘बूढ़ी कुतिया’ तक कहा था।

वह शीत युद्ध का दौर था, पूरा विश्व अमेरिका और USSR के दो खेमों में बंटा था। भारत अपने पारंपरिक मित्र USSR के साथ था, तो अमेरिका पाकिस्तान के साथ था।

अमेरिकी मीडिया में यह ख़बर चलने लगी कि इंदिरा गांधी को अमेरिकी राष्ट्रपति से डांट पड़ने वाली है, पाकिस्तान से संभावित युद्ध को लेकर उन्हें कड़ी चेतावनी दी जाने वाली है।

रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी को चेतावनी दी कि,

“अगर भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की हिम्मत की, तो नतीजे अच्छे नहीं होंगे। भारत को पछताना होगा।”

इस बैठक में मौजूद इंदिरा गांधी के सलाहकार पी. एन. हक्सर के अनुसार, “इंदिरा गांधी की नज़र लगातार निक्सन के चेहरे पर लगी हुई थी और इंदिरा ने निक्सन की चेतावनी को अनसुना कर दिया।”

वहां से उठीं और सीधे बाहर निकल गईं। तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री और सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर उनके पीछे-पीछे दौड़ते रहे, “मैम? मैम?” करते रहे, मगर इंदिरा गांधी नहीं रुकीं। वह अमेरिकी राष्ट्रपति के डिनर को छोड़कर बाहर आईं, अपनी कार में बैठीं और निकलकर भारत आ गईं, और पाकिस्तान को दो टुकड़ों में तोड़ दिया। पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों को घुटने पर लाकर सरेंडर करवा दिया।

देश के मुसलमानों और कश्मीरियों पर आक्रमण करने की बजाय पाकिस्तान पर आक्रमण करें, आपको लाखों वीर अब्दुल हमीद और ब्रिगेडियर उस्मान मिलेंगे।

मगर आप ऐसा करेंगे नहीं, फट्टू हैं आप, बस फुलझड़ी छोड़ेंगे और मीडिया द्वारा उसे परमाणु बम बताकर देश में अपनी मज़बूत नेतृत्व की छवि बनाएंगे।

अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा सामने कैमरा पर बेइज्जत करने के बावजूद, वहीं कैमरा पर भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की धमकी के बावजूद, खीस निपोरेंगे, और यहां आकर देशवासियों को आपस में लड़ाएंगे। मंगलसूत्र, गाय, रोटी, घर छीन लेंगे, इससे डराएंगे।

बस इतनी ही ताकत है।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनकी कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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