कठुआ, जम्मू-कश्मीर: पहलगाम आतंकी हमले में सुरक्षा चूक पर सवाल उठाना एक वरिष्ठ पत्रकार को भारी पड़ गया। दैनिक जागरण के पत्रकार राकेश शर्मा को कठुआ में भाजपा कार्यकर्ताओं ने बुरी तरह पीटा — वो भी भाजपा विधायकों की मौजूदगी में।
इस शर्मनाक घटना ने एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र में सत्ता बनाम मीडिया की आज़ादी की बहस को हवा दे दी है।
राकेश शर्मा ने भाजपा नेताओं से एक सीधा सवाल किया था: “आप कब तक पाकिस्तान के पुतले जलाते रहेंगे? सुरक्षा व्यवस्था की विफलता पर कब जवाबदेही तय होगी?”
बस इतना पूछने पर माहौल अचानक हिंसक हो गया। भाजपा कार्यकर्ता हिमांशु शर्मा ने पत्रकार पर पाकिस्तान की भाषा बोलने का आरोप लगाते हुए हमला कर दिया। इसके बाद अन्य कार्यकर्ता भी हमले में शामिल हो गए।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे पत्रकार को लात-घूंसे मारे गए और वह जान बचाकर भागने की कोशिश कर रहा है।
डीएसपी रविंदर सिंह की मदद से पत्रकार को किसी तरह बचाया गया। शर्मा के अनुसार: “मुझे मुक्कों, लातों और जो कुछ भी उनके हाथ में था, उससे बेरहमी से पीटा गया।”
घटना के बाद कठुआ पुलिस स्टेशन में रविंदर सिंह, मंजीत सिंह, राज सागर, अश्विनी कुमार और हिमांशु शर्मा के खिलाफ बीएनएस की धारा 191 और 115 के तहत एफआईआर दर्ज हुई।
हालांकि, पत्रकार ने दावा किया कि पुलिस ने अब तक उन्हें एफआईआर की कॉपी तक नहीं दी है।
भाजपा नेताओं की भूमिका और प्रतिक्रिया
घटना के दौरान भाजपा विधायक देवेंद्र मनियाल, भारत भूषण और राजीव जसरोटिया मौके पर मौजूद थे।
हालांकि उन्होंने हमले को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताया और कहा कि घटना के समय वे “सड़क के दूसरी ओर” चले गए थे — एक ऐसा बचाव जो सवालों के घेरे में है।
“Attack on Journalist is Attack on Democracy”
पत्रकार संगठनों का विरोध प्रदर्शन:
घटना के विरोध में, 30 से अधिक पत्रकारों ने कठुआ के शहीदी चौक और जम्मू प्रेस क्लब में विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने काली पट्टियां बांधकर भाजपा के सभी कार्यक्रमों के बहिष्कार की घोषणा की।
कठुआ प्रेस क्लब के महासचिव हरप्रीत सिंह ने कहा, “अगर भाजपा नेताओं को पत्रकारों की सुरक्षा की परवाह नहीं है, तो हम उन्हें कवर क्यों करें?”
हरप्रीत सिंह ने कहा: “जब सत्ता जवाब नहीं देना चाहती और सवाल पूछने पर हिंसा होती है, तो लोकतंत्र खतरे में होता है।”
पत्रकारों ने कठुआ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शोभित सक्सेना से मुलाकात कर सख्त कार्रवाई की मांग भी की।
सवाल जो उठने चाहिए
यह घटना एक गंभीर सवाल उठाती है:
क्या आज के भारत में सत्ता से सवाल पूछना गुनाह बन गया है? पत्रकारों की जिम्मेदारी है कि वे सरकारों से जवाबदेही मांगें। लेकिन अगर सवाल पूछने पर पत्रकारों की पिटाई होती है, तो यह लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है।
- अगर विधायक घटनास्थल पर थे, तो हमले को रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया गया?
- पत्रकारों को निशाना बनाना किस लोकतांत्रिक आदर्श का हिस्सा है?
- क्या सत्ता में सवाल पूछने का अधिकार अब अपराध बन गया है?
दैनिक जागरण के जम्मू-कश्मीर के स्थानीय संस्करण में इस घटना की रिपोर्ट छपी, लेकिन राष्ट्रीय संस्करणों और बड़े चैनलों में इस मुद्दे पर आश्चर्यजनक चुप्पी देखी गई।
जब पत्रकारों को पीटा जाता है क्योंकि वे सवाल पूछते हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र पर हमला होता है। राकेश शर्मा का हमला उन सभी आवाज़ों के लिए चेतावनी है जो सत्ता से जवाब मांगने का साहस करते हैं।
“पत्रकारों का खामोश होना एक राष्ट्र के अंधकार में डूबने की शुरुआत है।”
भाजपा शासन में पत्रकारों पर हमले (2014–2024)
भारत में पत्रकारों पर हमलों की स्थिति पिछले एक दशक में गंभीर रूप से बिगड़ी है, विशेष रूप से भाजपा के शासन काल में।
वर्ष | हमलों की संख्या | पत्रकारों की मौतें | गिरफ्तारियाँ |
2014-2015 | 32 | 5 | 2 |
2016-2017 | 28 | 6 | 3 |
2018-2019 | 35 | 7 | 5 |
2020-2021 | 29 | 6 | 4 |
2022-2024 | 38 | 9 | 6 |
कुल | 162 | 33 | 20 |
(स्रोत: CPJ, RSF, RRAG)
“जब पत्रकारों से सवाल पूछने का अधिकार छीन लिया जाता है, तब लोकतंत्र केवल नाम का रह जाता है।”
राकेश शर्मा पर हुआ हमला एक isolated घटना नहीं है, बल्कि यह उस गहरी समस्या का संकेत है जो आज भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को झकझोर रही है। सत्ता के गलियारों में सवालों से असहजता बढ़ती जा रही है, और जवाब देने की बजाय सवाल पूछने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। अगर आज हम इस हमले को अनदेखा करते हैं, तो कल लोकतंत्र की सबसे बड़ी सुरक्षा—स्वतंत्र मीडिया—हमेशा के लिए खो सकती है। सत्ता से सवाल पूछना गुनाह नहीं, बल्कि एक जीवित लोकतंत्र की सबसे बड़ी निशानी है। अब फैसला जनता को करना है: क्या हम एक सवाल पूछने वाले समाज रहेंगे, या एक खामोश भीड़ बनकर रह जाएंगे?