भारत के प्रमुख मीडिया संस्थानों में से एक NDTV कभी अपनी साख, निष्पक्षता और जनहित के लिए उठाए गए सवालों के लिए जाना जाता था। लेकिन आज की स्थिति देखें तो लगता है NDTV अब एक मीडिया हाउस नहीं, बल्कि एक मनोरंजन और SEO रैंकिंग के पीछे भागता ब्लॉग बन गया है। इसकी मिसाल हाल ही में NDTV पर छपे एक ब्लॉग – “A Rant on SEO, Growth and Google by a Digital Media Survivor” – से साफ मिलती है।
भारत में जब भी निष्पक्ष पत्रकारिता की बात होती थी, NDTV का नाम जरूर आता था। लेकिन आज NDTV को देखकर एक पुरानी कहावत याद आती है: “जिस घर को रोशन करना था, वहीं से आग लगी है।”
अदानी समूह द्वारा अधिग्रहण के बाद NDTV की पहचान एक स्वतंत्र मीडिया संस्थान से बदलकर सरकार समर्थक प्रोपेगेंडा चैनल बनती जा रही है।
अदानी अधिग्रहण और पत्रकारिता का पतन:
NDTV के संस्थापक प्रणय रॉय और वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने वर्षों तक इस संस्थान को एक स्वतंत्र और निडर न्यूज़ ब्रांड बनाया था। लेकिन 2022 में अदानी ग्रुप द्वारा NDTV के अधिग्रहण ने इस छवि को धूमिल कर दिया। अब NDTV पर सरकार विरोधी खबरों का स्थान सरकार समर्थक नारों और प्रेस रिलीज़ जैसी रिपोर्टिंग ने ले लिया है।
NDTV अब वही कह रहा है जो सरकार सुनना चाहती है।
पैनल डिबेट्स: विचार-विमर्श से शोर-शराबा तक:
जहां पहले NDTV के डिबेट शो शांति से विषय की गहराई में जाते थे, वहीं आज यह चैनल भी रिपब्लिक भारत, ज़ी न्यूज़ और आज तक जैसे शोर मचाते, चिल्लाते, और लोगों को मानसिक रूप से उत्तेजित करने वाले फॉर्मेट को अपना चुका है।
- कोई भी मुद्दा हो, बहस अब समाधान नहीं बल्कि ध्रुवीकरण पर आधारित होती है।
- गंभीर विषयों पर भी चीखने वाले एंकर, कट-पेस्ट ग्राफिक्स और ‘देशद्रोही बनाम राष्ट्रवादी’ जैसे शब्दों की भरमार है।
क्या NDTV अब Debate ka Dangal और Breaking Breaking Breaking की होड़ में अपने पुराने गौरव को खो चुका है?
रवीश कुमार की विदाई: एक युग का अंत
NDTV की विश्वसनीयता का सबसे बड़ा स्तंभ थे रवीश कुमार, जिन्हें रेमन मैग्सेसे अवार्ड से नवाज़ा गया।
उनकी पत्रकारिता जन सरोकारों, किसान, छात्र, बेरोज़गारी, महंगाई जैसे मुद्दों पर आधारित थी: न कि धर्म, राष्ट्रवाद या स्टार किड्स की लव लाइफ पर।
लेकिन रवीश कुमार के NDTV छोड़ने के बाद चैनल की आत्मा भी चली गई।
NDTV अब एक रिपब्लिक भारत Lite बनता जा रहा है – जिसमें न विचार हैं, न विवेक।
प्राथमिकताएं बदलीं: स्टार किड्स > जनता
NDTV की वेबसाइट पर एक उदाहरण देखें:
पलक तिवारी, जिन्होंने मुश्किल से 2-3 फिल्में की हैं, उन पर 6000 से ज्यादा आर्टिकल्स NDTV पर मौजूद हैं।
वहीं दूसरी ओर, महाराष्ट्र या राजस्थान के जल संकट, आदिवासी इलाकों की स्थिति, या बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर शायद ही कोई प्रमुख रिपोर्टिंग हो।
क्या यही NDTV की पत्रकारिता का स्तर रह गया है?
SEO, गूगल और बहानेबाज़ी
NDTV के ब्लॉग में SEO और गूगल एल्गोरिदम को दोष दिया गया कि अब ट्रैफिक नहीं आ रहा। लेकिन सच्चाई यह है कि:
- गूगल के अपडेट सालों से आते रहे हैं।
- जो वेबसाइट सार्थक और ओरिजिनल कंटेंट देती हैं, वो अब भी रैंक करती हैं।
- NDTV का ट्रैफिक गिरना इस बात का संकेत है कि जनता अब गॉसिप आधारित रिपोर्टिंग से ऊब चुकी है।
हमारा सवाल NDTV से:
“क्या आप फिर से जन सरोकारों की पत्रकारिता पर लौटेंगे या हमेशा के लिए ‘प्रोपेगेंडा टीवी’ बनना ही आपकी पहचान बन चुकी है?